पाँच सूरज बो दिए हैं हमने रेगिस्तान में – कँवल ज़ियाई

बात ग़ैरत की अभी बाक़ी है हिन्दोस्तान में,

पाँच सूरज बो दिए हैं हमने रेगिस्तान में

सच तो ये है साफ़ रखना था हमें अपना हिसाब
सच तो ये है दुनिया वाले चाहते थे इनकलाब
सच तो ये है हम नहीं डरते ज़माने से जनाब
सच तो ये है हम को देना था किसी ख़त का जवाब

 इसलिए कुछ रंग भरकर ज्ञान का विज्ञान में
पाँच सूरज बो दिए हैं हमने रेगिस्तान में

 ताकि सारी उम्र हमको रोशनी मिलती रहे
सुर्खियाँ चेहरों को होंठो को हंसी मिलती रहे
सिर्फ कलिओं के तब्बसुम से नहीं है वास्ता
रेत के ज़र्रों को भी इक जिंदगी मिलती रहे

 इसलिए पहचान को ढाला नई पहचान में
पाँच सूरज बो दिए हैं हमने रेगिस्तान में

 रेत के हर एक ज़र्रे में सितारा देखिये
यह भी करतब देखिये यह भी नज़ारा देखिये
आपको जो शक था साहिब दूर हमने कर दिया
कौन हैं हम-क्या इरादा है हमारा देखिये

सोचिये-क्यों हम खुलकर आ गए मैदान में
पाँच सूरज बो दिए हैं हमने रेगिस्तान में

 बोलने पर रोक कैसी क्या हमारे लब नहीं
तब जो पाबन्दी थी हम पर वो यक़ीनन अब नहीं
हमको मतलब है फ़कत अपनी जरुरत से जनाब
दुनिया वालों की शिकायत से हमें मतलब नहीं

 अब न छोड़ेंगे कमी कोई भी अपनी शान में
पाँच सूरज बो दिए हैं हमने रेगिस्तान में

 वक़्त से आँखे मिलाना जुर्म कैसे हो गया
अपनी ताक़त आज़माना ज़ुर्म कैसे हो गया
बेगुनाहों की हलाक़त ज़ुर्म है बेशक हुज़ूर
मौत से ख़ुद को बचाना ज़ुर्म कैसे हो गया

 बात ग़ैरत की अभी बाक़ी है हिन्दोस्तान में
पाँच सूरज बो दिए हैं हमने रेगिस्तान में

 -“कँवल ज़ियाई”