80 WPM Hindi Steno Dictation for SSC, 80 wpm dictation High Court #49&50

80 wpm Hindi Steno Dictation
80 wpm का गति से भारत में बेकारी व बेरोजगारी की समस्या पर आधारित 10 मिनट का संसदीय आशुलिपि (शार्टहैण्ड) डिक्टेशन SSC, High Court, डीएसएसबी के लिए

सभापति महोदय, जिस भावना से मैंने यह बिल पेश किया है, उसके महत्व को सरकारी और विरोधी पक्ष, दोनों ने एकमत से अनुभव किया है कि देश में बेकारी की समस्या एक भयंकर रूप धारण कर रही है और इसके कारण हमारे देश का विकास चाहे वह सामाजिक हो, आर्थिक हो या सांस्कृतिक हो, रूका हुआ है। पिछले 55 वर्षों से इसी परिस्थिति का निर्माण होते हुए हम देख रहे हैं।

सभापति महोदय, जिस भावना से मैंने यह बिल पेश किया है, उसके महत्व को सरकारी और विरोधी पक्ष, दोनों ने एकमत से अनुभव किया है कि देश में बेकारी की समस्या एक भयंकर रूप धारण कर रही है और इसके कारण हमारे देश का विकास चाहे वह सामाजिक हो, आर्थिक हो या सांस्कृतिक हो, रूका हुआ है। पिछले 55 वर्षों से इसी परिस्थिति का निर्माण होते हुए हम देख रहे हैं।

मंत्री महोदय ने यहां पर अभी कहा कि राष्ट्रपति इस काम को नहीं कर सकते हैं, क्योंकि यह उनके अधिकार के बाहर है। आप जब भी यह देखते हैं कि किसी राज्य में वहां की व्यवस्था, वहां का विकास ठीक नहीं हो रहा है तो उस राज्य में राष्ट्रपति का शासन लागू कर देते हैं. जब किसी राज्य में अराजकता फैल रही हो, विकास का काम समाप्त हो गया हो और वहॉ के नेता जिम्मेदारी से काम नहीं करते हों तो वहां राज्यपाल शासन लागू कर दिया जाता है। ऐसे अनेक उदाहरण हमारे देश में मौजूद हैं। इसी प्रकार हमारे राष्ट्रपति सबसे ऊंचे अधिकारी हैं और अगर देश में इस तरह की स्थिति काफी समय तक चलती रहे तो राष्ट्रपति को आपातकालीन स्थिति में इस देश की सुरक्षा के लिए, इस देश की प्रगति के लिए सारी जिम्मेदारी अपने हाथ में लेने का अधिकार है।

हमारे भाइयों ने बहुत से उदाहरण दिये कि राज्यों में संयुक्त सरकारें नहीं चलीं लेकिन उसके पीछे राजनीतिक मामले थे। अगर कोई राजनीतिक पार्टी जिम्मेदारी से काम नहीं करती तो संविधान में स्पष्ट है कि उस राज्य की सारी जिम्मेदारी राष्ट्रपति की है। में आपको एक उदाहरण देना चाहता हूं। संविधान में आदिवासी हरिजनों की उन्नति के लिए प्रण किया गया था कि दस वर्ष में उनकी सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति को सुधार देंगे लेकिन यह सरकार उसमें भी असफल रही। इस समय को चार बार दस-दस वर्ष के लिए बढ़ाया जा चुका है लेकिन फिर भी उनकी आर्थिक और सामाजिक उन्नति नहीं हो रही है। इसमें यह सरकार असफल रही है। पिछले सत्र में इस विषय पर सरकार के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव भी आया था, इसलिए मेरा कहना है कि भारत में इस समय जो बेकारी की समस्या है, वह इस ढंग की समस्या है जिसके रहते सारे देश को उन्नत बनाने की व्यवस्था हम सोच रहे हैं।

सभापति महोदय, वह केवल एक स्वप्न ही रह जाएगा। ऐसी स्थिति में मैं अनुभव करता हूं कि आपातकाल की घोषणा की जाय और इस देश के जो बुद्धिमान लोग हैं, उनको लेकर एक सर्वदलीय सरकार स्थापित की जाए। हम यह अनुभव करते हैं कि जिस तरह का शासन इस समय चल रहा है, उससे देश की कोई भी समस्या हल होने वाली नहीं है बल्कि इस सरकार की गलतियों से समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। राष्ट्र की आन्तरिक सुरक्षा के विषय में जो बिल मंत्री महोदय ने प्रस्तुत किया है, उस पर अब तक जितने भी भाषण हुए हैं, उनको मैंने बहुत ध्यान से सुना है। माननीय सदस्यों ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लपेट में बहुत सारी बातें कही हैं और हमारे दल की ओर इशारा करते हुए कहा कि हम भी इसके औचित्य के सम्बन्ध में फिर से विचार करें। मैं जहां तक समझ पाया हूं हमारे गृहमंत्री जी को इस बिल को प्रस्तुत करने में कोई सुख नहीं हुआ बल्कि वर्तमान परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए उनको दुख हो रहा है। आज जब हम नागरिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा और स्वतंत्रता की बात करते हैं तो सब से पहले उसमें व्यक्तिगत सुरक्षा की बात करते हैं। प्रत्येक नागरिक इस राष्ट्र की अपनी सत्ता में रहकर सुरक्षित रहना चाहता है। हमने इस बात की सुरक्षा संविधान में दी है और हम यह आशा करते हैं कि राजनीतिक दलों में आपसी मतभेद होते हुए भी राजनीतिक मतभेद का आदर होना चाहिए। मतभेद होते हुए भी शान्ति और सुरक्षा बनी रहनी चाहिए। माननीय सदस्य पूछते हैं, ऐसी कौन सी असाधारण परिस्थिति आ गयी थी जिसके कारण आपको नज़रबन्दी बिल लाना पड़ा? मैं आपसे कहना चाहता हूं कि क्या ही अच्छा होता यदि नेहरू जी की उस बात को जो उन्होंने लोकतंत्र के सम्बन्ध बहुत वर्षो पहले कही थी, आज भी स्मरण रखते। उन्होंने एक बार कहा थी कि लोकतंत्र के संचालन और दायित्व निर्वाह में अगर किसी प्रधानमंत्री को बार-बार पीछे मुड़कर देखना पड़े की कोई छुरा तो नहीं भोंक रहा है, यह कोई अच्छी बात नहीं। यदि ऐसी परिस्थिति देश में पैदा हो जाये, साम्प्रदायिक दृष्टि से देश में विभिन्न स्थानों पर साम्प्रदायिक दंगे हो रहे हों, उनका सामना करते हुए यदि हम जनता को सुरक्षा दे सकें तो फिर किसी बिल की आवश्यकता नहीं है।

 

कठिन शब्द
  • भयंकर
  • सांस्कृतिक
  • अराजकता
  • जिम्मेदारी
  • आपातकालीन स्थिति
  • संयुक्त सरकार
  • आर्थिक स्थिति
  • आदिवासी हरिजन
  • अविश्वास
  • स्वप्न
  • सर्वदलीय सरकार
  • औचित्य
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता
  • नागरिक सुरक्षा
  • व्यक्तिगत सुरक्षा
  • मतभेद
  • नज़रबन्दी
  • दायित्व निर्वाह
  • साम्प्रदायिक दंगे

महत्वपूर्ण वाक्यांश
  • पेश किया है
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  • होते हुए
  • हम देख रहे हैं।
  • काम को नहीं कर सकते हैं
  • यह देखते हैं
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  • मेरा कहना है कि
  • अनुभव करता हूं
  • प्रस्तुत किया है
  • चल रहा है
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  • रहना चाहता है
  • यह आशा करते हैं कि
  • आवश्यकता नहीं है