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100 WPM Online Hindi Steno Dictation 800 Words #47&48

अध्यक्ष महोदय, मैं आपकी आज्ञा से अपना बिल सदन के सामने विचार के लिए रखना चाहता हूँ। मैंने इस बिल में एक बात कही है, जो विदेशी धन गलत तरीके से हमारे देश में आता है, उसके ऊपर कोई कड़ी निगरानी होनी चाहिए। Continue Reading

100 wpm shorthand dictation

100 शब्द प्रति मिनट की गति से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आधारित संसदीय डिक्टेशन

अध्यक्ष महोदय, मैं आपकी आज्ञा से अपना बिल सदन के सामने विचार के लिए रखना चाहता हूँ। मैंने इस बिल में एक बात कही है, जो विदेशी धन गलत तरीके से हमारे देश में आता है, उसके ऊपर कोई कड़ी निगरानी होनी चाहिए। मैंने इस बिल में यह भी कहा है कि कोई भी पार्टी, कोई भी संस्था, कोई भी आदमी अगर विदेशों से धन लेता है तो उस की सूचना तुरंत सरकार को दी जानी चाहिए।

अध्यक्ष महोदय, मैं आप की आज्ञा से अपना बिल सदन के सामने विचार के लिए रखना चाहता हूँ। मैंने इस बिल में एक बात कही है कि जो विदेशी धन गलत तरीके से हमारे देश में आता है, उसके ऊपर कोई कड़ी निगरानी होनी चाहिए। मैंने इस बिल में यह भी कहा है कि कोई पार्टी, कोई भी संस्था, कोई भी आदमी अगर विदेशों से धन लेता है तो उस की सूचना तुरन्त सरकार को दी जानी चाहिए। उस आदमी या उस संस्था के लिए यह भी अनिवार्य हो कि उस राशि का पूरी तरह से लेखा-जोखा रखे और एक वर्ष के बाद उस राशि के खर्च का पूरा लेखा-जोखा सरकार के पास भेजे ताकि सरकार को मालूम हो सके कि कितना धन विदेशों से आया तथा वह किस प्रकार खर्च हुआ।

इस सदन में इस संबंध में अनेक बार बहस हो चुकी है। स्वयं गृह मंत्री ने यहां कहा था कि वह इस के संबंध में एक बिल सदन में लाएंगे, लेकिन मुझे बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि ढांई वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक वह बिल सदन में नहीं आया। आज अगर कोई यह कहे कि मैंने यह पैसा अमेरिका से लिया है या चीन से लिया या अन्य देश से लिया है, तो उसके ऊपर आज कोई भी मुकदमा नहीं चल सकता। आज हमारे देश में कोई कानून ऐसा नहीं है, जो इस चीज पर प्रतिबंध लगा सकता हो। आज तीन बड़े-बड़े देश हैं, जहाँ से हमारे देश में पैसा आता है। कुछ पैसा अमेरिका से आता है, कुछ चीन से आता है और कुछ पाकिस्तान से आता है और छुट-पुट अन्य देशों से। इस प्रकार का धन हमारे देश में कितना फैला है, अगर इसकी ओर आप ध्यान देंगे तो एक चिंताजनक स्थिति आपके सामने आकर खड़ी हो जाएगी। अगर इसी तरह से चलता रहा तो हो सकता है कि एक दिन हमारे देश की सुरक्षा, प्रजातंत्र की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। विदेशी सेना हमारे देश पर आक्रमण न कर सके, इस बात की चिंता तो हमारी सरकार करती है, लेकिन विदेशी धन की कोई चिंता ये सरकार नहीं कर रही है। आज चाहें राजनीतिक क्षेत्र हो, सामाजिक क्षेत्र हो, शिक्षा का क्षेत्र हो, चारों तरफ विदेशी धन के जरिए बाहर के लोग हमारा गला घोटने के लिए तैयार बैठे हैं। आप बड़े-बड़े शहरों में जाएं तो पता चलेगा।

अध्यक्ष महोदय, पैसा देखकर लोगों को जासूस बनाया जा रहा है। सीमा क्षेत्र में जाएं या पिछड़े क्षेत्रों में जाएं, चारो तरफ विदेशी पैसे के बल पर हमारे देश के साथ खिलवाड़ हो रहा है। इतना ही नहीं विश्वविद्यालयों में जांए तो वहां भी यही खेल खेला जा रहा है। गिरजाघरों में, मन्दिरों में, मस्जिदों में, विदेशी पैसे के बल पर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश हो रही है। यह समस्या किसी एक पार्टी की नहीं है। यह राष्ट्र की समस्या है। आज सदन में वित्त मंत्रालय की मांगों पर बहस हो रही है। सरकार के हर विभाग का वित्त मंत्रालय से संबंध होता है। इस देश में जो प्रगति हुई है और हो रही है, उसकी काफी चर्चा हुई है। जो प्रगति हुई है, वह चारों ओर दिखाई पड़ रही है। कम-से-कम रेल विभाग में तो काफी प्रगति दिखाई पड़ रही है। रेलों में अब भीड़ कम होती है ,बिजली का भी काफी विकास हुआ है, लेकिन देहातों की तरफ हमारा जो दृष्टिकोण है, उस को देखकर कुछ कष्ट होता है। अभी जो जनगणने हुई है उसको देखने से मालूम होता है कि शहरों की जनसंख्या अधिक बढ़ी है। आज देहातों से लोग शहरों की तरफ आ रहे हैं। हमारे राष्ट्रपिता ने कहा था कि लोग देहातों में बसें, देहातों के जीवन को पवित्र करें, लेकिन स्वराज्य के 55 वर्ष बीत जाने के बाद भी देहातों की तरफ न जाकर, शहरों की तरफ लोग आते जा रहे हैं। इस प्रश्न पर हमको कुछ गम्भीरता से विचार करना होगा। अगर देहातों में लोगों को सुख-सुविधाएं मिलती जो आज शहरों में प्राप्त हैं तो लोग देहातों से शहरों की तरफ न दौड़ते, बल्कि शहरों से देहातों की तरफ जाते।

देहात के जीवन में दो प्रकार की चीजें थी। एक तो जमींदारी प्रथा थी और दूसरे वे लोग थे जो रूपये का लेन-देन करते थे। ज़मींदारी प्रथा समाप्त हुई। इससे लोगों को कुछ राहत मिली। जहाँ तक रूपये के लेन-देन का प्रश्न है। पहले 25 प्रतिशत तक का ब्याज लिया जाता था। उसमें अब कुछ कमी अवश्य है लेकिन कहीं-कहीं तो अभी भी उतना ही ब्याज लिया जाता है। जिससे कर्जा लेने वाला उनके चंगुल से नहीं निकल पाता। सरकार भी अब उचित दर पर कर्जा देने लगी है। इस वजह से कहीं-कहीं पर साहूकारों के ब्याज की दर में कमी आई है।

कठिन शब्द
  • विदेशी धन
  • निगरानी

वाक्यांश
  • सदन के सामने
  • विचार के लिए
  • रखना चाहता हूँ
  • एक बात
  • हमारे देश में
  • होनी चाहिए
  • दी जानी चाहिए

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